जब भी रावण का नाम आता है, ज़्यादातर लोग उसे सीता हरण और उसकी पराजय के चलते एक खलनायक के रूप में याद करते हैं, लेकिन इतिहास के पन्नों में दर्ज कई तथ्यों से पता चलता है कि रावण सिर्फ एक दुर्जन नहीं, बल्कि एक विद्वान, महापराक्रमी योद्धा और संस्कृत का मर्मज्ञ भी था।
पुलस्त्य ऋषि का पुत्र रावण दशानन कहलाता था—उसके दस सिर उसके ज्ञान, विवेक, और विविधता के प्रतीक माने जाते हैं। रावण लंका का सम्राट था, जिसने अपने पराक्रम, तपस्या और शास्त्र ज्ञान से उस स्वर्ण नगरी को समृद्ध किया।
इतना ही नहीं, रावण वेदों का ज्ञाता, राजनीतिज्ञ और भगवान शिव का परम भक्त भी था। लेकिन उसके विचारों में महिलाओं को लेकर कुछ कठोर धारणाएं थीं, जो आज के समाज में विवादास्पद मानी जा सकती हैं।
उसने महिलाओं को साहसी बताया, पर साथ ही चंचल, मूर्ख और स्वार्थी कहने से भी नहीं चूका। रावण के अनुसार, महिलाएं परिस्थितियों के अनुसार निर्णय बदलती हैं, सुंदरता और श्रृंगार को प्राथमिकता देती हैं, लेकिन साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखतीं।
उसने यह भी माना कि स्त्रियों में प्रेमभाव होता है, लेकिन जब वे कठोर हो जाती हैं तो करुणा से भी दूर हो जाती हैं। ये विचार रावण के गूढ़ और विरोधाभासी व्यक्तित्व को दर्शाते हैं—एक ऐसा व्यक्तित्व जो यथार्थ और अध्यात्म के बीच झूलता रहा।
आज भी रावण का नाम सिर्फ बुराई का प्रतीक नहीं, बल्कि उस युग के विद्वत्ता और शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। यह लेख रावण के बहुआयामी स्वरूप को उजागर करता है, जिसमें अच्छाई और बुराई दोनों का समावेश है, और यही उसे एक जटिल किंवदंती बनाता है। ऐसे तथ्यों को जानना आवश्यक है ताकि हम एकतरफा दृष्टिकोण से हटकर इतिहास को संतुलित नजरिए से समझ सकें।