Mustard Crop : मेघदूत एग्रो पर आपका स्वागत है! सरसों की फसल, जिसे कम लागत में अच्छा मुनाफा देने वाली फसल माना जाता है, इस मौसम में कई रोगों के संक्रमण का सामना कर रही है। सही निगरानी और वैज्ञानिक प्रबंधन अपनाकर किसान इस समस्या से बच सकते हैं।
सरसों की फसल में होने वाले प्रमुख रोग
अल्टरनेरिया ब्लाइट रोग
लक्षण: पत्तों और फलियों पर गोल और भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, जो बाद में काले धब्बों में बदल जाते हैं।
असर: समय पर उपचार न करने से फसल की गुणवत्ता और उत्पादन पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
फुलिया या डाउनी मिल्ड्र्यू
लक्षण: पत्तियों के नीचे भूरे रंग के धब्बे और ऊपरी सतह पर पीले निशान बनते हैं।
असर: यह रोग फसल की पत्तियों को कमजोर करता है, जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है।
सफेद रतुआ
लक्षण: पत्तियों पर सफेद और क्रीम रंग के छोटे धब्बे बनते हैं।
असर: यह रोग विशेष रूप से पिछेती फसलों में देखा जाता है और फसल की गुणवत्ता को खराब करता है।
तना गलन रोग
लक्षण: तनों पर भूरे रंग के लंबे धब्बे और सफेद रंग की फफूंद बनती है।
असर: पौधों के तने टूटने लगते हैं, जिससे उपज में भारी कमी आती है।
रोकथाम और प्रबंधन के उपाय
फफूंदनाशक का उपयोग:
अल्टरनेरिया ब्लाइट, फुलिया और सफेद रतुआ के लिए 600 ग्राम मैकोजेब (उइथेन या इंडोफिल एम 45) को 250-300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से हर 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
यह छिड़काव 3-4 बार करें, जैसा कि कृषि वैज्ञानिक सलाह देते हैं।
समय पर छिड़काव:
छिड़काव सायं 3 बजे के बाद करें ताकि फसल में उपज बढ़ाने में सहायक मधुमक्खियों को नुकसान न पहुंचे।
रजिस्टर फफूंदनाशकों का उपयोग:
हमेशा रजिस्टर फफूंदनाशकों का ही उपयोग करें, जिससे फसल को किसी भी तरह की हानि से बचाया जा सके।
क्यों है समय पर प्रबंधन जरूरी?
सरसों की फसल में रोगों का संक्रमण उत्पादन और गुणवत्ता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। इसके अलावा, मधुमक्खियों का सरसों की उपज बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान होता है, इसलिए छिड़काव का सही समय और सही फफूंदनाशक का उपयोग बेहद जरूरी है।
किसानों को चाहिए कि वे अपनी फसल की नियमित निगरानी करें और किसी भी रोग के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत प्रबंधन के उपाय अपनाएं। वैज्ञानिक तकनीकों और सही समय पर किए गए उपचार से न केवल फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार होगा, बल्कि किसानों को अधिक मुनाफा भी मिलेगा।
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