मेघदूत एग्रो, कर्नाटक कर्नाटक के यादगीर जिले के मालदार गांव में MNREGA (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) को लेकर ऐसा फर्जीवाड़ा सामने आया है, जिसने ग्रामीण विकास योजनाओं की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। दरअसल, गांव में चल रही एक नाला गहरीकरण परियोजना के तहत कुछ पुरुषों ने साड़ी पहनकर महिलाओं के नाम पर मजदूरी की और असली महिला मजदूरों को काम से दूर रखा गया।
यह हैरान करने वाली घटना तब उजागर हुई जब सोशल मीडिया पर वायरल हुई तस्वीरों में कुछ पुरुष साड़ी पहनकर खेतों में काम करते दिखे। यह काम किसान निंगप्पा पुजारी के खेत में हो रहा था और परियोजना की लागत करीब 3 लाख रुपये बताई गई है। इस गड़बड़ी की पुष्टि खुद जिला पंचायत के अधिकारी लावेश ओराडिया ने की है।
उन्होंने बताया कि साइट पर दर्ज मजदूरों की उपस्थिति और असल में काम कर रहे लोगों के बीच भारी असमानता थी। रिकॉर्ड में 6 पुरुष और 4 महिलाएं दर्ज थीं, जबकि मौके पर महिलाएं नहीं बल्कि पुरुष ही महिलाओं के भेष में मजदूरी कर रहे थे। जांच में सामने आया कि इस फर्जीवाड़े की जड़ पंचायत विभाग से अनुबंधित ‘बेयरफुट टेक्नीशीयन’ वीरेश था, जिसे अब सस्पेंड कर दिया गया है।
इतना ही नहीं, अटेंडेंस और मजदूरी भुगतान के लिए उपयोग किए जाने वाले नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सॉफ्टवेयर में भी फर्जी तस्वीरें अपलोड कर गलत लोगों को लाभ पहुंचाया गया। पंचायत विकास अधिकारी चन्नबसवा ने खुद को इससे अलग बताते हुए कहा कि जैसे ही उन्हें जानकारी मिली, तुरंत कार्रवाई की गई। हालांकि अभी तक किसी भी मजदूर को मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया है।
इस घटना के बाद असली महिला मजदूरों में भारी नाराजगी है। उन्होंने इसे अपनी मेहनत और अधिकारों के साथ धोखा बताते हुए न्याय की मांग की है। यह मामला न केवल MNREGA की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह दिखाता है कि किस तरह जमीनी स्तर पर सिस्टम को चकमा देकर योजनाओं का दुरुपयोग किया जा रहा है। ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि प्रशासन सख्त निगरानी और जवाबदेही सुनिश्चित करे ताकि ग्रामीण रोजगार योजनाओं का उद्देश्य पूरा हो सके।