डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम (Ram Rahim Parole) को हरियाणा सरकार ने 30 दिन की पैरोल (Parole) दे दी है। मंगलवार, 28 जनवरी की सुबह रोहतक की सुनारिया जेल से उनकी रिहाई हुई। यह पैरोल ऐसे समय पर दी गई है जब दिल्ली में 5 फरवरी को विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election) के लिए वोटिंग होनी है और हरियाणा में मार्च के पहले सप्ताह में नगर निगम और परिषद चुनाव संभावित हैं। राम रहीम की पैरोल को इन चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है, क्योंकि इसका असर चुनावी समीकरणों पर पड़ सकता है।
राम रहीम, जो दो साध्वियों के यौन शोषण (Sexual Assault) और एक पत्रकार की हत्या के मामले में दोषी ठहराया जा चुका है, 2017 से रोहतक की सुनारिया जेल में सजा काट रहा है। यह 12वीं बार है जब उसे जेल से बाहर आने का मौका मिला है। राम रहीम ने उत्तर प्रदेश के बरनावा आश्रम में रहने की इच्छा जताई है, जहां वह आमतौर पर अपने अनुयायियों से ऑनलाइन प्रवचन (Online Preaching) करता है।
राम रहीम की पैरोल का चुनावी समीकरणों पर असर
दिल्ली में 5 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव और हरियाणा में नगर निकाय चुनावों (Municipal Elections) के मद्देनजर यह पैरोल कई सवाल खड़े करती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि राम रहीम के अनुयायियों की संख्या लाखों में है, जो पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फैले हुए हैं। इन इलाकों में उनका प्रभाव राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।
हरियाणा में 8 नगर निगमों और 32 परिषदों के चुनाव मार्च के पहले सप्ताह में होने की संभावना है। ऐसे में राम रहीम की पैरोल को चुनावी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। इससे पहले भी कई बार राम रहीम को चुनाव के समय पैरोल दी गई है, जिसके बाद उनके अनुयायियों ने चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सितंबर 2024 में मांगी थी इमरजेंसी पैरोल
सितंबर 2024 में राम रहीम ने हरियाणा सरकार से 20 दिन की इमरजेंसी पैरोल की मांग की थी। हालांकि, उस समय विधानसभा चुनाव (Assembly Election) के लिए आचार संहिता लागू होने के कारण इस मामले को मुख्य निर्वाचन अधिकारी (Chief Electoral Officer) के पास भेजा गया था। प्रारंभिक आपत्तियों के बावजूद, 1 अक्टूबर को उनकी पैरोल मंजूर कर ली गई थी। इस दौरान राम रहीम ने उत्तर प्रदेश के बरनावा आश्रम में रहने की इच्छा जताई थी।
यौन शोषण और हत्या मामलों में दोषी
डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को 25 अगस्त 2017 को दो साध्वियों के यौन शोषण के मामले में दोषी ठहराया गया था। इसके लिए उन्हें 20 साल की सजा सुनाई गई। इसके अलावा, 2019 में पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के मामले में भी उन्हें उम्रकैद की सजा दी गई।
हालांकि, अगस्त 2024 में उन्हें 21 दिन की फरलो (Furlough) दी गई थी। उस समय उनकी जेल से रिहाई के बाद काफिले में संदिग्ध SUV गाड़ी की एंट्री ने सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क कर दिया था। SUV से नशीला पदार्थ बरामद हुआ था, जिसके बाद मामले की जांच तेज हो गई थी।
पैरोल और विवाद
राम रहीम की बार-बार पैरोल पर रिहाई को लेकर सवाल उठते रहे हैं। विपक्षी दलों का आरोप है कि हरियाणा सरकार राजनीतिक लाभ के लिए राम रहीम को पैरोल देती है। इसके जरिए वह डेरा सच्चा सौदा अनुयायियों का समर्थन हासिल करना चाहती है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि राम रहीम की पैरोल न केवल उनके अनुयायियों के लिए बल्कि राजनीतिक दलों के लिए भी बड़ा मौका साबित हो सकती है। इसका असर आगामी चुनावों के परिणामों पर देखने को मिल सकता है।
चुनावों में पैरोल का संभावित प्रभाव
दिल्ली विधानसभा चुनाव और हरियाणा के निकाय चुनावों में राम रहीम की पैरोल का क्या असर पड़ेगा, यह देखना दिलचस्प होगा। राम रहीम के अनुयायियों की सक्रियता कई क्षेत्रों में वोटिंग पैटर्न को बदल सकती है। ऐसे में इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक और सामाजिक बहस तेज हो गई है।
राम रहीम को मिली 30 दिन की पैरोल न केवल कानूनी बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी चर्चा का विषय बनी हुई है। दिल्ली और हरियाणा में चुनावी सरगर्मी के बीच इस कदम को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस बार उनकी रिहाई का चुनावी समीकरणों पर कितना असर पड़ता है।
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