Ministry of agriculture: जलवायु परिवर्तन के असर के चलते मौसम में आए बदलाव ने कृषि क्षेत्र को खासा प्रभावित किया है। बारिश के अनियमित पैटर्न, अत्यधिक गर्मी और ठंड, तथा सूखा और बाढ़ जैसी घटनाओं ने किसानों के लिए बहुत सी चुनौतियाँ उत्पन्न की हैं। इन परिस्थितियों से निपटने के लिए सरकार ने एक बड़ी पहल शुरू की है, जिसमें गेहूं और अन्य फसलों की उन्नत किस्मों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
प्रधानमंत्री का विशेष निर्देश और वैज्ञानिकों की पहल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार इस बात पर जोर दिया है कि किसानों को बेहतर और जलवायु के अनुरूप बीज उपलब्ध कराए जाएं। उन्होंने वैज्ञानिकों से अपील की थी कि वे मौसम के बदलाव को ध्यान में रखते हुए ऐसे बीज विकसित करें जो सूखा, बर्फबारी, बाढ़ और लू जैसी चरम परिस्थितियों में भी अच्छे परिणाम दे सकें।
कृषि मंत्रालय का अहम बयान
कृषि मंत्रालय ने हाल ही में संसद में दी गई जानकारी में बताया कि पिछले 10 वर्षों में भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने 2593 नई किस्मों का विकास किया है। इन बीजों में से 2177 किस्में जैविक और अजैविक दोनों प्रकार के तनावों के प्रति सहनशील पाई गई हैं। इन किस्मों का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाव करना है और यह फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने में मदद करेंगी।
आईसीएआर का जलवायु लचीला कृषि पर अध्ययन
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए राष्ट्रीय नवाचार के तहत “जलवायु लचीला कृषि” परियोजना शुरू की है। इस परियोजना के तहत, 651 जिलों में कृषि पर जलवायु परिवर्तन के असर का आकलन किया गया। 310 जिलों को जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील माना गया है। इन जिलों में मौसम की अनियमितताएं ज्यादा देखने को मिलती हैं, और इन क्षेत्रों के किसानों के लिए उन्नत किस्मों और जलवायु लचीली प्रौद्योगिकियों का उपयोग अत्यंत आवश्यक है।
“जलवायु लचीले गाँव” का प्रयास
आईसीएआर की पहल के तहत “जलवायु लचीले गाँव” (CRV) की अवधारणा को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत, किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता को समझाने और इससे निपटने के लिए उन्हें सही तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इन गाँवों में जलवायु लचीली प्रौद्योगिकियों को प्रदर्शित किया जा रहा है, जिनमें 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 151 जिलों में 448 गांव शामिल हैं।
जिला कृषि आकस्मिक योजनाएँ (DACPs)
कृषि मंत्रालय ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जिलेवार कृषि आकस्मिक योजनाएँ (DACPs) तैयार की हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने और उनके लिए बेहतर कृषि उपायों को लागू करना है। इसके अंतर्गत, जलवायु लचीली किस्में, बीज, और कृषि प्रबंधन प्रथाओं को प्रत्येक क्षेत्र की जलवायु के अनुसार तैयार किया जा रहा है।
तालिका: जलवायु लचीले प्रौद्योगिकियों का वितरण
राज्य/केंद्र शासित प्रदेश | जलवायु लचीले गाँवों की संख्या | किसानों को लाभ |
---|---|---|
उत्तर प्रदेश | 50 | 5000+ |
बिहार | 40 | 4000+ |
हरियाणा | 30 | 3500+ |
पंजाब | 28 | 3000+ |
महाराष्ट्र | 20 | 2500+ |
कृषि में जलवायु परिवर्तन का समाधान
सरकार द्वारा की गई यह पहल न केवल किसानों के लिए फायदेमंद होगी, बल्कि इससे पूरे देश में कृषि उत्पादन को स्थिर रखने में मदद मिलेगी। वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों के प्रयासों से उन्नत बीजों और जलवायु लचीली प्रौद्योगिकियों के उपयोग से कृषि क्षेत्र में तेजी से बदलाव आ रहा है, जो आने वाले समय में फसलों की उपज को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगा।
अंतिम विचार
भारत में कृषि के भविष्य के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। सरकार और वैज्ञानिकों का यह सहयोग किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने और उनकी आय बढ़ाने में मदद करेगा। जलवायु लचीली किस्मों के उपयोग से न केवल गेहूं की उपज में वृद्धि होगी, बल्कि अन्य फसलों की उपज भी बढ़ेगी।
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