मेघदूत एग्रो, वृन्दावन: तीर्थयात्रा के दौरान मासिक धर्म आने पर महिलाओं को क्या करना चाहिए? इस सवाल का संत प्रेमानंद महाराज ने सुंदर समाधान देते हुए कहा कि “मासिक धर्म वंदनीय है, निंदनीय नहीं”।
उन्होंने स्पष्ट किया कि महिलाएं स्नान करके दूर से भगवान के दर्शन कर सकती हैं, हालांकि सेवा या सामग्री स्पर्श न करें।
उनका यह बयान तीर्थस्थलों पर महिलाओं को लेकर चल रही पुरानी मान्यताओं को चुनौती देता है।
प्रेमानंद जी ने इसकी पौराणिक व्याख्या करते हुए बताया कि यह देवराज इंद्र की ब्रह्महत्या का पाप है जिसे महिलाओं ने अपने ऊपर लिया – जैसे नदियों ने फेन, वृक्षों ने गोंद और भूमि ने बंजरपन के रूप में।
उन्होंने जोर देकर कहा कि “इतनी दूर आकर दर्शन का अवसर न छोड़ें, क्योंकि यह शारीरिक प्रक्रिया स्वाभाविक है और पुनर्जन्म का कोई भरोसा नहीं”।
यह बयान धार्मिक यात्राओं में महिलाओं की भागीदारी को लेकर नए दृष्टिकोण की शुरुआत कर सकता है।
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