कांगड़ा जिले के किसानों के लिए एक खतरनाक खतरा उत्पन्न हो गया है। पीला रतुआ, गेहूं की फसल को बर्बाद करने वाला एक खतरनाक रोग, ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। लेकिन कृषि विभाग इस संकट से निपटने के लिए पूरी ताकत से जुटा हुआ है। कृषि विकास खंड परागपुर में कृषि विभाग की टीम ने गेहूं की फसल का निरीक्षण किया और किसानों को इस खतरनाक रोग से बचने के लिए जागरूक किया। कृषि अधिकारियों ने इस रोग के लक्षणों को पहचानने और समय रहते बचाव उपायों को अपनाने की सलाह दी है।
पीला रतुआ क्या है?
पीला रतुआ गेहूं और जौ की फसल में लगने वाला एक खतरनाक रोग है, जिसे पक्सीनिया स्ट्राईफ़ॉर्मिस नामक कवक से होता है। यह रोग गेहूं की फसल की उपज में 100% नुकसान कर सकता है। पीला रतुआ से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर पीले धब्बे दिखाई देते हैं, जो कतारों में होते हैं। इसके अलावा, पत्तियों के डंठलों पर भी ये धब्बे नजर आते हैं और यदि इन्हें छुआ जाए तो हल्दी जैसा पाउडर हाथों पर लग सकता है।
कांगड़ा में पीला रतुआ का खतरा
कांगड़ा में कृषि विभाग ने किसानों को पीला रतुआ से बचाने के लिए अपनी मुहिम तेज कर दी है। बायो कंट्रोल लैब पालमपुर और कृषि विभाग की टीम ने परागपुर क्षेत्र के विभिन्न पंचायतों का दौरा किया। इस दौरान, गेहूं की फसल में पीला रतुआ के लक्षणों की जांच की गई। अमरोह, कोटला, कोटला बेहड़, और सेहरी जैसे इलाकों में इस रोग के कोई लक्षण नहीं पाए गए, जिससे किसानों को थोड़ी राहत मिली है।
पीला रतुआ से बचाव के उपाय
कृषि विभाग के अधिकारियों ने किसानों को इस रोग से बचने के लिए कुछ अहम सावधानियां अपनाने की सलाह दी है। सबसे पहले, किसानों को अपने खेतों का नियमित निरीक्षण करने की आवश्यकता है। अगर खेतों में पीला रतुआ के लक्षण दिखाई दें, तो उन्हें तुरंत रासायनिक उपचार करना चाहिए। गांवों के कृषि प्रसार अधिकारियों ने किसानों को बताया कि वे समय रहते उचित उपचार न करने पर इस रोग से बड़ी क्षति का सामना कर सकते हैं।
कांगड़ा में कृषि विभाग की सक्रियता
कृषि विकास अधिकारी रीता ठाकुर और कृषि प्रसार अधिकारी अंजू ठाकुर ने किसानों को इस रोग के लक्षणों से अवगत कराया। उन्होंने बताया कि पीला रतुआ के लक्षण जैसे कि पीले धब्बे और हल्दी जैसा पाउडर को पहचानने में मदद मिलेगी। पालमपुर विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर जोगिंद्र पाल राय ने भी इस अभियान में अपनी विशेषज्ञता दी और किसानों को सही दिशा-निर्देश दिए।
पीला रतुआ का असर और समाधान
पीला रतुआ एक ऐसी बीमारी है जो न केवल फसल की उपज को प्रभावित करती है, बल्कि फसल की गुणवत्ता को भी घटाती है। यदि यह रोग फैल जाए तो पूरी फसल का नुकसान हो सकता है। किसानों को सलाह दी गई है कि वे खेतों में जल निकासी और हवा की सही दिशा का ध्यान रखें, ताकि रोग का प्रसार रोका जा सके। इसके अलावा, रासायनिक स्प्रे और जैविक नियंत्रण उपायों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
किसानों को जागरूक करना जरूरी
कृषि विभाग का मानना है कि किसानों का जागरूक होना इस संकट से निपटने के लिए सबसे अहम कदम है। विभाग ने अपने प्रयासों में तेजी लाते हुए किसानों को इस रोग के बारे में सभी जानकारी देने का काम किया है। उन्हें यह भी बताया गया है कि पीला रतुआ के फैलने से पहले निवारक उपायों को अपनाना जरूरी है।
कृषि विभाग का फसल निरीक्षण अभियान
कृषि विभाग की टीम ने कांगड़ा जिले के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा किया। परागपुर में निरीक्षण के दौरान टीम ने पाया कि यहां तक कि अब तक इस रोग के कोई लक्षण नहीं मिले हैं। हालांकि, अधिकारियों ने किसानों को अलर्ट रहने और खेतों की निगरानी रखने की सलाह दी है। कृषि अधिकारियों ने यह भी बताया कि किसानों को फसल की सफाई और स्वस्थ बीज का ध्यान रखना चाहिए।
किसानों के लिए सलाह
कृषि विभाग के निदेशक राहुल कटोच ने बताया कि पीला रतुआ से बचाव के लिए किसानों को सख्त नियमों का पालन करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि किसानों को एकजुट होकर इस रोग से निपटना होगा, ताकि पूरे क्षेत्र में इस बीमारी का प्रभाव न फैले।
इस खतरनाक रोग से बचने के उपाय
पीला रतुआ से बचाव के लिए रासायनिक दवाओं का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन इसका प्रयोग विशेषज्ञों की सलाह से ही करें। इसके अलावा, जैविक नियंत्रण के उपायों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। किसानों को समान्य निगरानी और खेतों की सफाई को लेकर सतर्क रहने की आवश्यकता है।
कृषि विभाग की भविष्यवाणी
कृषि विभाग ने आने वाले दिनों में इस रोग के प्रसार को लेकर एक सतर्कता अभियान चलाने का निर्णय लिया है। विभाग का कहना है कि आने वाले दिनों में इस रोग के और भी मामले सामने आ सकते हैं, इसलिए किसानों को सतर्क रहना होगा।
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